दीपक मिश्र - एक प्रतिबद्ध समाजवादी व यायावर
प्रतिबद्ध समाजवादी, लेखक, चिन्तक व यायावर दीपक मिश्र इंटरनेशनल सोशलिस्ट काउन्सिल के सचिव, समाजवादी चिंतन/बौद्धिक सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं अनुचिंतन (www.anuchintan.com) के संपादक हैं। इसके पूर्व वे समाजवादी युवजन सभा के दो बार (लगभग सात वर्ष) राष्ट्रीय सचिव भी रह चुके हैं। राजनीति में आने से पूर्व वे पत्रकारिता में थे। उन्होंने आन्ध्र प्रदेश के समाचार पत्र ’’वार्ता’’ सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) से प्रकाशित होने वाले ’’जनपथ’’ और हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित दैनिक "दिव्य हिमाचल" में फीचर सम्पादक के रूप में काम किया। प्रारंभ से ही साहित्यिक और राजनीतिक गतिविधियों में गहरी अभिरूचि रखने वाले श्री मिश्र को छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र, कैफी आज़्मी जैसी विभूतियों का स्नेह व सानिध्य मिला। उनकी कार्यप्रणाली और समाजवाद के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए ही अखिलेश यादव जी ने उन्हें पहले युवजन सभा की राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य फिर सचिव बनाया। 23 दिसम्बर, 2012 को सपा के राष्ट्रीय महासचिव, रामगोपाल यादव जी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह जी तथा शिवपाल यादव जी की उपस्थिति में समाजवादी बौद्धिक सभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत करने की घोषणा की। दीपक मिश्र ’’समाजवादी ही क्यों’’ ’’भगत सिंह, डा0 लोहिया-दो सागर एक तल के ’’अप्रतिम अखिलेश’’ ’’जन-स्वर जनेश्वर’’ ’’जननायक कर्पूरी ठाकुर’’ ’’चन्द्रशेखर’’ समेत कई पुस्तकें लिख चुके हैं। ’’अप्रतिम अखिलेश’’ जहाँ अखिलेश यादव पर लिखी गई प्रथम पुस्तक है तो वहीं भगत सिंह और डा0 लोहिया पर प्रथम ऐतिहासिक की एनाॅलोजी (सादृश्यता) लिखने का श्रेय श्री मिश्र को ही जाता है। उनके 500 से अधिक लेख भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। दीपक मिश्र का जन संघर्षों से गहरा सरोकार है। लोकतंत्र की बहाली की माँग को लेकर वे भूटान और नेपाल में गिरफ्तार हो चुके हैं, कई आन्दोलनों में कई बार जेल जा चुके दीपक ने ’’सितम के चार दिन’’ लखनऊ के कारागार प्रवास के दौरान लिखी।
वे यायावर व फक्कड़ मनोवृत्ति के हैं। पूरे देश में भ्रमण कर गोष्ठियों, परिचर्चाओं व बहसों में भाग ले चुके हैं। प्रख्यात विद्वान डा0 कुबेर मिश्र (आजमगढ़) के परिवार में डा0 जय नारायण मिश्र व श्रीमती शान्ति मिश्र के पुत्र के रूप में जन्मे श्री दीपक मिश्र ने प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता में नानी के पास ग्रहण की। हाईस्कूल केन्द्रीय विद्यालय आजमगढ़ से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। बाँसी (सिद्धार्थनगर) से इण्टर और स्नातक की डिग्री हासिल कर गोरखपुर विश्वविद्यालय में परास्नातक करने पहुँचे। अर्थशास्त्र से परास्नातक होने के बाद पत्रकारिता और जनसंचार में डिग्री ली और दूरदर्शन, आकाशवाणी व विभिन्न अखबारों के सम्पादकीय विभागों में 6 वर्ष काम करने के पश्चात नौकरी का परित्याग कर पूर्णतया सक्रिय रूप से राजनीति व स्वतंत्र लेखन से जुड़ा था।
उन्हें ’’दलित मित्र सम्मान, आंध्र प्रदेश दलित साहित्य अकादमी सम्मान, राष्ट्रीय सम्मान, बाबू जगजीवनराम सम्मान, युवा शक्ति सम्मान, नेशनल एवार्ड, थाई एवार्ड फॉर पीस, जम्मू एण्ड काश्मीर पीस एवार्ड समेत दो दर्जन अधिक सम्मान प्राप्त हो चुका है। उन्होंने आन्दोलन कर 2000 में भोजपुरी में समाचार बुलेटिन का प्रसारण करवाया और तिलक मार्ग (लखनऊ) का नाम ब्रिटानिया हुकूमत के पुलिस अफसर वी0एन0 लहरी के नाम पर किये जाने के विरोध में सत्याग्रह किया और अन्ततः दोबारा तिलक मार्ग करवाकर ही दम लिया। वे इस समय हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अभियान चला रहे हैं। इस सन्दर्भ में कई प्रान्तों की प्रवासीय यात्रा कर चुके हैं। श्री मिश्र को परिचर्चाओं व गोष्ठियों के आयोजन में गहरी दिलचस्पी है। अपनी सादगी, सरलता, सहजता, स्पष्टवादिता, अपरिग्राही, स्वभाव के कारण राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं उनकी अलग छवि व पहचान है। डा0 लोहिया पर विशेषांकों के प्रकाशन के लिए भी उन्हें जाना जाता है। वे लिखने-पढ़ने वाले राजनीतिज्ञों की परम्परा को पूरी प्रतिबद्धता से आगे बढ़ा रहे हैं। बौद्धिक जगत में उनकी चर्चा आने वाले दिनों में समाजवाद के एक बड़े व्याख्याता के रूप में की जाती है।